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संस्मृतियाँ

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  • Pages:168 pages
  • Edition Year:2020
  • Publisher:Rahul Foundation
  • Language:Hindi
  • ISBN:9788187728726


Book Description

1947 की आधी-अधूरी आज़ादी के बाद सत्ताधारियों की तमाम कोशिशों के बावजूद न तो क्रान्तिकारी शहीदों की याद को भुलाया जा सका और न ही उनके विचारों को झूठे प्रचार और उपेक्षा के नीचे दफ़न किया जा सका। इतिहास की किताबों में उन्हें भले ही जगह नहीं मिली या दो-चार पैराग्राफ़ में पूरे आन्दोलन को समेट दिया गया हो, लेकिन जनता के दिलों में वे ही राज करते रहे हैं। क्रान्तिकारियों के विचारों को सामने लाने वाली अनेक पुस्तकें और पुस्तिकाएँ अब प्रकाशित हो चुकी हैं। शहीदेआज़म भगतसिंह की जेल नोटबुक और उनके तथा उनके साथियों के उपलब्ध पत्र और दस्तावेज़ भी प्रकाशित हो चुके हैं। हालाँकि अभी भी बहुत कुछ खोया हुआ है या सरकारी अभिलेखागारों की फ़ाइलों में बन्द है जिसे सामने लाने की ज़रूरत है। हँसते-हँसते मौत का सामना करने वाले इन नौजवान क्रान्तिकारियों का जीवन भी बेहद दिलचस्प और प्रेरक था। लगातार कठिनाइयों और जोखिम के बीच रहकर क्रान्तिकारी काम करने और रास्ता तलाशने की जद्दोजहद के बीच वे जिस बेफ़िक्री, दिलेरी और खुशमिज़ाजी के साथ जीते थे वह एक मिसाल है। उनका खुलापन, साफ़गोई, एक-दूसरे के प्रति गहरा प्रेम, सम्मान और साथ ही ध्येय के लिए सबकुछ कुर्बान कर देने का ज़ज़्बा उनके प्रति आदर ही नहीं पैदा करता बल्कि उनके जैसा बनने का हौसला भी देता है। शहीद क्रान्तिकारियों के ये आत्मीय संस्मरण उनके साथी क्रान्तिकारी और घनिष्ठ मित्र शिव वर्मा ने लिखे हैं। इस लोकप्रिय पुस्तक के कई संस्करण पहले निकल चुके हैं और इसका भारत की लगभग सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। इसे सोवियत लैण्ड नेहरू अवार्ड कमेटी द्वारा पुरस्कृत भी किया जा चुका है।




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Shiv Verma

क्रान्तिकारी एवं लेखक

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